हार्ट अटैक: ना घबराये ......!!! सहज सुलभ उपाय .... 99 प्रतिशत
ब्लॉकेज को भी रिमूव कर देता है पीपल
का पत्ता....
पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें
न हों, बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों।
प्रत्येक का ऊपर व नीचे
का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें। पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें
एक गिलास
पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने
पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें, दवा तैयार। इस काढ़े
की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक
तीन घंटे
बाद प्रातः
लें। हार्ट
अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात लगातार पंद्रह
दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ
हो जाता
है और फिर दिल का दौरा पड़ने की संभावना नहीं रहती।
दिल के रोगी इस नुस्खे
का एक बार प्रयोग अवश्य
करें। * पीपल
के पत्ते
में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है। * इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती
हैं। * खुराक
लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं
होना चाहिए,
बल्कि सुपाच्य
व हल्का
नाश्ता करने
के बाद ही लें। * प्रयोगकाल
में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस,
मछली, अंडे,
शराब, धूम्रपान
का प्रयोग
बंद कर दें। नमक, चिकनाई
का प्रयोग
बंद कर दें। * अनार, पपीता,
आंवला, बथुआ,
लहसुन, मैथी
दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी,
रात में भिगोए काले चने, किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । ...... तो अब समझ आया, भगवान
ने पीपल
के पत्तों
को हार्टशेप
क्यों बनाया
Thursday, December 12, 2013
Monday, November 25, 2013
रोजाना तुलसी को ऐसे खाने से इन रोगों का इलाज अपने आप हो जाता है
।हिन्दू धर्म में तुलसी को इसके अनगिनत औषधीय गुणों के कारण पूज्य माना गया है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में तुलसी से जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यताएं है। हिन्दू धर्म में तुलसी को घर में लगाना अनिवार्य माना गया है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है।तुलसी के कुछ पत्ते रोजाना खाने से बहुत सी बीमारियों का इलाज अपने आप हो जाता है।
सुबह पानी के साथ तुलसी की 5 पत्तियां निगलने से कई प्रकार की बीमारियां व संक्रामक रोग नहीं होंगे।
- तुलसी की जड़ का काढ़ा ज्वर (बुखार) नाशक होता है।
अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं।
- रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
तुलसी को थकान मिटाने वाली एक औषधि मानते है, इनके अनुसार अत्यधिक थकान होने पर तुलसी के पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।
औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।
कमर में दर्द हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
- तुलसी का रस 10 ग्राम चावल के मांड के साथ सात दिन पीएं। प्रदर रोग ठीक होगा। लेकिन इस दौरान दूध और भात ही खाएं।
तुलसी,अदरक और मुलैठी को घोटकर शहद के साथ लेने से सर्दी के बुखार में आराम होता है।
- दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
Thursday, November 7, 2013
रोजाना ऐसा करने नहीं होगी गैस की समस्या, सिरदर्द से मिलेगी राहत
हमारे आस-पास कई ऐसी चीजें होती हैं, जिनका सेवन तो हम रोजाना करते हैं, लेकिन उनके गुणों से अनजान ही रहते हैं। आइए आज हम आपको ऐसी ही कुछ इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के बारे में बताते हैं जो कई गुणों से भरपूर हैं।
लगातार बैठ कर काम करने और खान-पान सावधानी नहीं रखने के कारण गैस की समस्या आज आम हो गई है। इस रोग में डकारें आना, पेट में गैस भरने से बेचैनी, घबराहट, छाती में जलन, पेट में गुड़गुडाहट, पेट व पीठ में हलका दर्द, सिर में भारीपन, आलस्य व थकावट तथा नाड़ी दुर्बलता जैस लक्षण देखने को मिलते हैं। कभी-कभी भूख नहीं लगने पर भी कुछ न कुछ खाने की बेवजह आदतों से भी पेट में एसिडिटी बनने लगती है।
यदि आप सही मायने में अपनी बीमारी कम करना चाहते हैं, तो आपको उसके लिए कुछ कारगार नुस्खे अपनाने की जरूरत है। कुछ घरेलू नुस्खे भी है, जिनको अपनाकर आप कई बीमारियां कम कर सकते हैं।
पान के पत्तों पर हल्का-सा तेल लगा लें। फिर गैस पर गर्म करें। इसे मोच वाले स्थान पर लगाने से दर्द से राहत मिलती है और सूजन भी कम होगी।
अचानक हाथ जल जाने पर बहुत तेज जलन होने की स्थिति में प्याज को आधा काटकर जलन वाले स्थान पर लगाएं। जलन कम होगी।
खाना खाने के बाद एक लहसुन की कली को चार मुनक्का के साथ लेने से बार-बार होने वाली गैस की समस्या से छुटकारा मिलेगा। पेट दर्द में भी राहत मिलेगी।
जुकाम होने पर अदरक पाउडर, घी और गुड़ समान मात्रा में लेकर मिलाएं और सुबह खाली पेट इसका सेवन करें। जुकाम जल्द ही ठीक हो जाएगा।
तिल के तेल में कालीमिर्च पाउडर मिलाकर गर्म करें। इससे पक्षाघात में निष्क्रिय हुए हिस्सों की नियमित रूप से मालिश करें। फायदा नजर आएगा।
दाद होने पर सूखी नीम व हल्दी पाउडर समान मात्रा में सरसों के तेल में मिलाएं। इसे एक घंटा लगाकर धो लें। दाद ठीक होने तक रोज लगाएं।
चंदन पाउडर में दूध और गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बनाएं। एक्जिमा के स्थान पर लगाएं। सूखने पर गुनगुने पानी से नहाएं। कुछ दिनों में एक्जिमा ठीक होगा।
Wednesday, October 30, 2013
पेट होगा ठीक
अगर पेट खराब हो गया है तो पुदीने की ताजी पत्तियों को काटकर पांच मिनट उबालें। इस मिंट टी को पीने से पेट को आराम मिलेगा।
झड़ जाएंगे मस्से
अरंडी के तेल में बेकिंग सोडा मिलाकर रात को मस्सों पर लगाकर सो जाएं। नियमित रूप से लगाने से धीरे-धीरे मस्से खत्म हो जाते हैं।
लगने लगेगी भूख
अगर भूख न लग रही हो तो अदरक को बारीक कीसकर उसमें नमक मिलाएं और आठ दिन तक रोजाना दिन में एक बार खाएं। इससे पेट साफ होगा और भूख लगने लगेगी।
पीलिया में गाजर का फायदा
पीलिया होने पर गाजर और गोभी का रस मिलाकर पीना चाहिए। विशेष रूप से गोभी का रस पीलिया में बहुत फायदेमंद है। इसे लेने से पीलिया ठीक होता है।
बढ़ेगा कॉन्सनट्रेशन लेवल
डिप्रेशन में कॉन्सनट्रेशन लेवल कम हो जाता है। यदि आपको यह समस्या हो तो रोज सुबह तुलसी के पत्तों का सेवन करें। इससे कॉन्सनट्रेशन बढ़ेगा।
दूर होगा किडनी स्टोन
अगर किडनी स्टोन की समस्या हो तो रोज कच्चे नारियल का पानी पीएं। यह किडनी के स्टोन को तोड़कर उसे यूरिन के जरिए बाहर निकाल देता है।
नजर होगी तेज
रोज सुबह खाली पेट एक चम्मच जीरा फांकने से नजर तेज होती है। साथ ही ब्लड प्रेशर का स्तर भी नियंत्रित रहता है।
दूर करने के लिए नारियल का तेल लगाएं
स्ट्रेच मार्क्स दूर करने के लिए इन पर रोज रात को नारियल का तेल लगाएं। इससे धीरे-धीरे सभी तरह के स्ट्रेच मार्क्स मिट जाते हैं।
Tuesday, October 29, 2013
लहसुन प्याज व हींग खाकर करें ब्लडप्रेशर का इलाज, ये हैं कुछ अनोखे तरीके
मध्यप्रदेश के सुदूर वनवासी अंचलों में बसे आदिवासी आज भी प्राकृतिक जडी-बूटियों की मदद से तमाम रोगों का इलाज करते है। जहाँ एक ओर इन आदिवासियों के पास सामान्य रोगों के उपचार के लिए आस-पास प्रकृति में पाए जाने वाले पौधे है वहीं कई जडी-बूटियों का इस्तेमाल अनके प्रकार के भयावह रोगों के इलाज के लिए भी इन आदिवासियों द्वारा किया जाता है।
मध्यप्रदेश की पातालकोट घाटी और आस-पास के इलाकों में भुमका (स्थानीय पारंपरिक वैद्य) हर्बल जडी-बूटियों के जानकार हैं और सैकडों सालों से इस परंपरागत ज्ञान को पीढी दर पीढी अपनाए हुए है। पिछ्ले डेढ दशक से ज्यादा समय से इन आदिवासियों की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को संकलित करने के बाद और अपने अनुभवों के आधार पर दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस ज्ञान में दम है.
आदिवासियों के अनुसार प्याज हाई ब्लड प्रेशर के लिए एक कारगर उपाय है, प्रतिदिन कच्चे प्याज का सेवन हितकर होता है। आधुनिक शोधों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्याज में प्याज में क्वेरसेटिन रसायन पाया जाता है जो कि एक एंटीओक्सिडेंट फ़्लेवेनोल है जो कि हृदय रोगों के नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
लेंडी पीपर के फल (2ग्राम) और अश्वगंधा की जडों का चूर्ण (3 ग्राम) दिन में एक बार प्रात: गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से रक्तचाप नियंत्रित होता है, साधारणत: आदिवासी हर्बल जानकार निम्न रक्तचाप के रोगियों को इस फार्मुले के सेवन की सलाह देते है।
आदिवासी हर्बल जानकार जटामांसी की जडों का काढा तैयार कर निम्न रक्तचाप (लो- ब्लड प्रेशर) से ग्रस्त रोगियों को देने की सलाह देते हैं। इनके अनुसार प्रतिदिन दिन में 2 बार इस काढे का 3 मिली सेवन किया जाए, यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
-हींग का सही तरीके से उपयोग किया जाए तो यह कई बीमारियों की दुश्मन है। वैद्यों का मानना है कि हींग को हमेशा भूनकर उपयोग में लाना चाहिए।हींग का सेवन भी उच्च रक्तचाप के रोगियों के उत्तम माना जाता है, आदिवासियों के अनुसार यह खून को गाढा करने में मददगार होता है ।
उच्च रक्त चाप से ग्रस्त लोगों को आदिवासी हर्बल जानकार कटहल की सब्जी, पके कटहल के फल और कटहल की पत्तियों का रस पीने की सलाह देते हैं।पत्थरचूर की जडों का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर लेने से उच्च रक्तचाप में फायदा होता है, हर्बल जानकारों के अनुसार इस फार्मुले का सेवन लगातार 2 माह तक करने से तेजी से फायदा होता है।
सर्पगंधा की जडों का चूर्ण (2 ग्राम) प्रतिदिन दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से एक माह के भीतर उच्च रक्त चाप के रोगियों को असर दिखने लगता है।
कमल के फूलों को गर्म पानी में डुबो दिया जाए और मसल लिया जाए, स्वादानुसार शक्कर मिलाकर उच्च रक्तचाप के रोगियों को प्रतिदिन सुबह दिया जाए तो आराम मिलता है।
तुलसी का रस एक या दो चम्मच पानी में मिलाकर खाली पेट सेवन करें। इसके एक घंटे बाद तक कुछ भी न खाएं या 21 तुलसी के पत्ते तथा सिलबट्टे पर पीसकर एक गिलास दही में मिलाकर सेवन करने से हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।
लहसुन को हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए अमृत के समान माना जाता है।लहसुनअदरक और लहसुन की कच्ची कलियाँ (2) प्रतिदिन सवेरे खाली पेट चबाने से रक्तचाप नियंत्रण होता है।माना जाता है कि लहसुन की चार कुली को चबा कर लेने से हार्ट अटैक जैसी बड़ी बीमारी को भी रोका जा सकता है।
कढ़ी पत्ता है जबरदस्त दवा, इन रोगों में करता है जादू सा असर(मोटापा ,डायबिटीज,पेट संबंधी,आंखों की ज्योति )
भारतीय खाने में जितने मसाले उपयोग किए जाते हैं, वो शरीर में औषधि की तरह काम करते हैं। उनमें ऐसी भी कुछ चीजे हैं, जिन्हें डालकर दाल या सब्जी में मसाले से होने वाली प्रॉब्लम्स को कम किया जा सकता है। इसी में से एक है कढ़ी पत्ता। भारत में खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए सदियों से कढ़ी पत्ता उपयोग में लाया जाता रहा है। कढ़ी में छौंक लगाने और दाल को स्वादिष्ट बनाने में इनका विशेषकर उपयोग किया जाता है।
100 ग्राम कढ़ी पत्ते में 66.3 प्रतिशत नमी, 6.1 प्रतिशत प्रोटीन, एक प्रतिशत वसा, 16 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 6.4 प्रतिशत फाइबर और 4.2 प्रतिशत मिनरल पाया जाता है। इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन और विटामिन सी पाया जाता है। यह पेट के लिए काफी फायदेमंद होता है।
डायबिटीज रोगी कढ़ी के पत्ते को रोज सुबह तीन महीने तक लगातार खाएं तो फायदा होगा। कढ़ी पत्ता मोटापे को कम कर के डायबिटीज को भी दूर कर सकता है।
- कढ़ी पत्ता मोटापा कम करने में तो बहुत प्रभावशाली है ही साथ ही इसकी पत्तियां हर्बल उपचार के लिए प्रयोग होती हैं। रोजाना कढ़ी पत्ता खाकर बढ़ते वजन को कंट्रोल में लाया जा सकता है।
कढ़ी पत्ते की एक ओर खासियत है कि इसे खाने पर पेट संबंधी सभी बीमारियां नियंत्रण में आ जाती हैं। इसके नियमित सेवन से पाचन शक्ति भी मजबूत बनी रहती है।
पेट में गड़बड़ी होने पर कढ़ी पत्ते को पीस छाछ में मिलाकर खाली पेट लेने पर आराम मिलता है या कढ़ी पत्ते का रस लेकर उसमें नीबू निचोड़ें और उसमें थोड़ा सी शकर मिलाकर प्रयोग करें।
कढ़ी पत्ता हमारी आंखों की ज्योति बढ़ाने में फायदेमंद है। साथ ही कैटरैक्ट यानी मोतियाबिंद जैसी बीमारी को भी दूर करती है।
अगर आपके बाल झड़ रहे हों या फिर अचानक सफेद होने लग गए हों तो कढ़ी पत्ता जरूर खाएं। अगर आपको कढ़ी पत्ता समूचा नहीं अच्छा लगता तो बाजार से उसका पाउडर खरीद लें।
Monday, October 28, 2013
तुरई है इन मर्जों की रामबाण दवा
तुरई या तोरी एक सब्जी है जिसे लगभग संपूर्ण भारत में उगाया जाता है। तुरई का वानस्पतिक नाम लुफ़्फ़ा एक्युटेंगुला है। तुरई को आदिवासी विभिन्न रोगोपचार के लिए उपयोग में लाते है। मध्यभारत के आदिवासी इसे सब्जी के तौर पर बड़े चाव से खाते हैं और हर्बल जानकार इसे कई नुस्खों में इस्तेमाल भी करते हैं चलिए आज जानते हैं ऐसे ही कुछ रोचक हर्बल नुस्खों को..
आधा किलो तुरई को बारीक काटकर 2 लीटर पानी में उबाल लिया जाए और छान लिया जाए। प्राप्त पानी में बैंगन को पका लें। बैंगन पक जाने के बाद इसे घी में भूनकर गुड़ के साथ खाने से बवासीर में बने दर्द तथा पीड़ा युक्त मस्से झड़ जाते हैं।
पीलिया होने पर तोरई के फल का रस यदि रोगी की नाक में दो से तीन बूंद डाला जाए तो नाक से पीले रंग का द्रव बाहर निकलता है और आदिवासी मानते है कि इससे अतिशीघ्र पीलिया रोग समाप्त हो जाता है।
पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार तुरई के छोटे छोटे टुकड़े काटकर छाँव में सुखा लिए जाए । सूखे टुकड़ों को नारियल के तेल में मिलाकर 5 दिन तक रखे और बाद में इसे गर्म कर लिया जाए। तेल छानकर प्रतिदिन बालों पर लगाए और मालिश भी करें तो बाल काले हो जाते हैं।
तुरई में इन्सुलिन की तरह पेप्टाईड्स पाए जाते हैं। इसलिए इसे डायबिटीज नियंत्रण के लिए एक अच्छे उपाय के तौर पर देखा जाता है।
तुरई की बेल को दूध या पानी में घिसकर 5 दिनों तक सुबह शाम पिया जाए तो पथरी में आराम मिलता है।
तुरई के पत्तों और बीजों को पानी में पीसकर त्वचा पर लगाने से दाद-खाज और खुजली जैसे रोगों में आराम मिलता है, वैसे ये कुष्ठ रोगों में भी हितकारी होता है।
अपचन और पेट की समस्याओं के लिए तुरई की सब्जी बेहद कारगर इलाज है। डांगी आदिवासियों के अनुसार अधपकी सब्जी पेट दर्द दूर कर देती है।
आदिवासी जानकारी के अनुसार लगातार तुरई का सेवन करना सेहत के लिए बेहद हितकर होता है। तुरई रक्त शुद्धिकरण के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है साथ ही यह लिवर के लिए भी गुणकारी होता है।
रोजाना दो चम्मच शहद मिलाकर एक गिलास दूध लेंगे तो होंगे ये फायदे
शहद और दूध दोनों को संपूर्ण आहार व स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी माने जाते हैं। वैसे तो दूध पीने व शहद खाने दोनों के ही कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं, लेकिन दूध और शहद दोनों को साथ लिया जाए तो इनके गुण दोगुने हो जाते हैं। वैसे तो शहद अपने एंटीबैक्टिरियल, एंटीआक्सीडेंट व एंटीफंगल गुणों के कारण सदियों से प्रयोग में लाया जाता रहा है। श्वसन संबंधी परेशानियों में भी फायदेमंद होता है। वहीं दूध में ए,बी,सी, डी, कैल्शियम, प्रोटीन व लैक्टिक एसिड आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इन दोनों को साथ में लेने पर कई अनोखे स्वास्थ्य लाभ होते हैं। चलिए जानते हैं दूध और शहद को साथ लेने के ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में
शहद व दूध दोनों ही सुक्ष्मजीवी को खत्म करते हैं। दूध व शहद साथ लेने से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है व स्किन ग्लो करने लगती है। दूध व शहद को बराबर मात्रा में मिला लें उतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर नहाने से पहले शरीर पर लगाएं स्किन निखर जाएगी।
शहद व दूध एक साथ लेने पर एंटीबैक्टीरियल प्रापर्टी की तरह काम करता है। इससे हानिकारक बैक्टिरिया शरीर पर आक्रमण नहीं कर पाते हैं व सर्दी, खांसी आदि समस्याएं दूर ही रहती है।
रोजाना एक गिलास दूध में दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से डाइजेस्टीव सिस्टम में सुधार होता है। कब्ज की समस्या से छुटकारा मिलता है। इसे रोजाना लेने से पेट व आंत से जुड़ी समस्याएं नहीं होती हैं।
दूध और शहद लेने न केवल स्किन ग्लो करने लगती है बल्कि शरीर को भी आराम मिलता है। प्राचीन समय से ही ग्रीक, रोमन, इजिप्ट, भारत आदि देशों में जवान दिखने के लिए एक एंटीएजिंग प्रापर्टी के रूप में दूध व शहद का सेवन किया जाता रहा है।
दूध व शहद साथ लेना अनिद्रा रोग को दूर करने का एक प्राचीन नुस्खा है] क्योंकि दूध व शहद लेने से दूध व शहद इन्सुलिन के स्त्रावण को नियंत्रित करता है जिससे ट्रिप्टोफेन का सही मात्रा में मस्तिष्क में स्त्रावण होता है। ट्रिप्टोफेन सिरोटोनिन में बदल जाता है सिरटोनिन मेलेटोनिन में परिवर्तित होकर दिमाग को रिलेक्स करता है व अनिद्रा की समस्या को दूर करता है।
रोजाना एक गिलास दूध में शहद लेने से शरीर को आंतरिक बल मिलता है। जहां दूध में प्रोटीन होता है वहीं शहद में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। दूध व शहद साथ लेने शरीर को ऊर्जा मिलती है व मेटाबॉलिज्म क्रिया को बढ़ावा मिलता है।
दूध व शहद का कॉम्बिनेशन शरीर को हेल्दी बनाएं रखने के साथ ही हड्डियों की बीमारियों जैसे आस्टियोपोरोसिस या उम्र के साथ होने वाले जोड़ों के दर्द आदि को सुरक्षित रखता है, क्योकि दूध व शहद दोनों में ही कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा होती है।
Monday, October 21, 2013
सभी के रोगों को दूर कर सकता है यह अमृत फल आंवला
आंवले का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं से लेकर हर्बल प्रोडक्ट तक में होता है। किसी भी प्रकार के रोग में आंवला काफी लाभदायक होता है। भगवान विष्णु के प्रिय इस फल को अमृत फल की भी संज्ञा दी गई है। बवासीर से लेकर खोई हुई मर्दाना ताकत में यह फल खासतौर से लाभदायक है। इसी प्रकार पेट के रोगों से लेकर आंख और बालों के लिए भी आंवला किसी रामबाण से कम नहीं है।
आंवला ना केवल कब्जकारक, मूत्रल, रक्त शोधक, पाचक, रूचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया, अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर में उपयोगी है बल्कि अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता में भी लाभदायक है
आंवला पितनाश्क होने के कारण पित-प्रधान रोगों की प्रधान औषधि है। यह फल मधुरता और शीतलता के कारण पित को शान्त करता है। आंवला तीनों दोषों (वात,पित,काफ) को संतुलित करता है।
आंवला पाचक, अरुचि नाशक वमन में लाभकारी है। यह नाड़ी तंत्र व इन्द्रियों को ताकत देने वाला पौष्टिक रसायन है। यह रक्तवाहिनियों के विकारों को नष्ट करने में सक्षम है।
आंवला ना केवल कब्जकारक, मूत्रल, रक्त शोधक, पाचक, रूचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया, अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर में उपयोगी है बल्कि अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता में भी लाभदायक है
आंवला पितनाश्क होने के कारण पित-प्रधान रोगों की प्रधान औषधि है। यह फल मधुरता और शीतलता के कारण पित को शान्त करता है। आंवला तीनों दोषों (वात,पित,काफ) को संतुलित करता है।
आंवला पाचक, अरुचि नाशक वमन में लाभकारी है। यह नाड़ी तंत्र व इन्द्रियों को ताकत देने वाला पौष्टिक रसायन है। यह रक्तवाहिनियों के विकारों को नष्ट करने में सक्षम है।
Tuesday, October 15, 2013
कटहल खाने के 7 तरीके: ऐसे खाएंगे तो ये रोग बिल्कुल खत्म हो जाएंगे
ग्रामीण अंचलों में सब्जी के तौर पर खाया जाने वाला कटहल कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर है। कटहल का वानस्पतिक नाम आर्टोकार्पस हेटेरोफ़िल्लस है। कटहल के फलों में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स, कार्बोहाईड्रेड्स के अलावा विटामिन्स पाए जाते है। सब्जी के तौर पर खाने के अलावा कटहल के फलों का अचार और पापड़ भी बनाया जाता है। आदिवासी अंचलों में कटहल का उपयोग अनेक रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
अल्सर में है बेहतरीन दवा
कटहल की पत्तियों की राख अल्सर के इलाज के लिए बहुत उपयोगी होती है। हरी ताजा पत्तियों को साफ धोकर सुखा लिया जाए। सूखने के बाद पत्तियों का चूर्ण तैयार किया जाए और पेट के अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति को इस चूर्ण को खिलाया जाए तो आराम मिलता है।
मुंह के छालों में असरदार
जिन्हें मुंह में बार-बार छाले होने की शिकायत हो उन्हें कटहल की कच्ची पत्तियों को चबाकर थूकना चाहिए, आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह छालों को ठीक कर देता है।
खाना जल्दी पचा देता है
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए। इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है। यही मिश्रण यदि अपचन से ग्रसित रोगी को दिया जाए तो उसे फ़ायदा मिलता है।
जोड़ों के दर्द में रामबाण
फल के छिलकों से निकलने वाला दूध यदि गांठनुमा सूजन, घाव और कटे-फ़टे अंगों पर लगाया जाए तो आराम मिलता है। इसी दूध से जोड़ दर्द होने पर जोड़ों पर मालिश की जाए तो आराम मिलता है।
डायबिटीज में लाभदायक
डांग- गुजरात के आदिवासी कटहल की पत्तियों के रस का सेवन करने की सलाह डायबिटीज के रोगियों को देते है। यही रस हाईब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए भी उत्तम है।
गले के रोगों को मिटा देता है
कटहल पेड़ की ताजी कोमल पत्तियों को कूट कर छोटी-छोटी गोली बनाकर लेने से गले के रोग में फायदा होता है।
कब्ज को खत्म करता है
पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार पके फलों का ज्यादा सेवन करने से पेट साफ होता है और अपचन की समस्या का निवारण हो जाता है।
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